Someone just called ......
चाहते तो रुक सकते थे उस दिन
कमी रह गयी तो बस सिर्फ,
कुछ अल्फाजों की
बस एक बार नज़रें मिलाने की,
सोच और सांस एक हुआ करते थे कभी
साथ उठते थे ,साथ चलते थे कदम,
आखों की हलचल सारी कहानी बयां कर दिया करती थी
सुकून मिलता था रूह को
सिर्फ इतनी सी ही थी शब्दों की अहमियत,
अचानक मौसम ने कुछ ऐसा रुख बदला
आसमां भी सर पर भारी लगने लगा,
रास्ता भी कुछ धुंधला सा लगने लगा था
देखते ही देखते काले पड़ने लगे थे वो दिन
एक-एक लव्ज़ अब
शतरंज के प्यादों की तरह लगने लगा था,
भले ही छोटे और आसान होते थे
पर हर तरफ से काटने को दौड़ते
हर एक नज़र अब
मन की तस्वीर को तोड़ जाती थी,
जैसे कांच टूटता है
हर एक टुकड़े में वो साहिल नज़र आता था
जिसके सपने साथ-साथ देखे थे कभी
आंसू तो थे पलकों पर उनके
बस इस बार साथ बह ना सके,
बस एक लम्हे का झगडा था वो
चाहते तो रुक सकते थे उस दिन !
Wednesday, April 8, 2009
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