This is a story of a boy named Ishaan from Godhra, the administrative city of Panchmahal district in Gujarat who now is a youngster who can take his own decisions. He is one among the targets of the deadly Gujarat riots. He belonged to a peaceful, middle-class, Hindu family living in a Muslim area, their residence being situated just opposite to the mosque. The boy lost his whole family in the riots when he was just 7, leaving himself all on his own. All of his relatives assumed him to be dead and never ever tried to find his body, they never showed themselves up in that Muslim area.
Now this boy was taken up by a tea-vendor, having his stall near the outskirts of Sant Road which led to Dahod. Unlike other children working for livelihood in the area smoking and gambling during their free times, he chose to write. This is an article from his book of write-ups speaking the words of his life-
एक पत्ते की तरह थी मेरी ज़िन्दगी कभी
हरी तो थी पर
सहारे पर जी रही थी,
हवा चलती उधर मुड़ जाती थी |
एक दिन एक झोंका हवा का ऐसा आया
कि वो पेड़ जड़ से ही उखड़ आया |
अपने फूल पत्तियों को बचाने कि भरपूर कोशिश की उसने
पर बिना किसी सहारे के वो सीधा ज़मीन पर आ गिरा |
उसे पता था गिनती की ही सांसें बची हुई थी उसके पास,
ज़िन्दगी की रफ़्तार उसके हाथों में नहीं थी अब |
आने वाली बारिश की पहली बूँदें
बहाकर ले जाने वाली थी उसे |
उस पेड़ से टूटकर अलग तो हो गया था मैं
पर पास ही पड़ा रहा उसके
देखता रहा उसे, उसके उन आखरी कुछ लम्हों में
साँसे रुकीं उसकी ता एहसास हुआ, कितना अकेला हूँ इस भीड़ में |
रेंगता रहा इधर-उधर, किसी सहारे की तलाश में
पेट ने उत्पात मचाई तो लगा जैसे
खुद का सहारा बनने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है मेरे पास
जान हथेली पर रखकर घुस गया इंसानों सी भरे हुए जंगल में |
अचानक एक कांटेदार झाड़ ने रोककर आसरा दिया, सुरक्षा दी
जीवन के कुछ रंग देकर ही खुश कर दिया था उसने मुझे,
अब तो एक पौधा बनने लायक हो गया हूँ मैं,
फिर भी उस झाड़ में ही फसकर रह गया हूँ मैं |
Wednesday, May 27, 2009
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nice one....
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