मैंने कहा था निशा से रुक जाओ
चंद लम्हे और दे दो हमें,
उड़ने दो उन हसीन सपनो के संग,
जिन्होंने उन चंद लम्हों में ही जीना सीखाया हमें |
मैंने कहा था निशा से रुक जाओ
ना दो कोई मौका हमारी पलकों को झपकने का,
डूब जाने दो अपने काजल के नशे में,
परछाई बन जाने दो मुझे अपनी उस पाक् परछाई का |
मैंने कहा था निशा से रुक जाओ
चलने दो उन सर्द हवाओं को,
बंधे रहने दो सारी फिजाओं को साथ-साथ,
जाने से रोक लो मेरे उस पलभर के सुकून को |
मैंने कहा था निशा से रुक जाओ
कोई और आप पर नज़र उठा कर देखे ये हमें अच्छा नहीं लगता,
आप कुछ पल के लिए ही दूर क्यों न हों,
पर मैं खुद को ही अच्छा नहीं लगता |
मैंने कहा था निशा से रुक जाओ
साथ चलो तुम मेरे, मेरी प्रेरणा बनकर,
चलने दो मेरी कलम को तृप्ति की राह पर,
गूंजती रहो मेरे गीतों की सरगम बनकर |
मैंने कहा था निशा से रुक जाओ
मत छोडो मुझे अकेले इतने सारे तारों के बीच,
डर से सहम जाता हूँ मैं,
जब खडा पता हूँ खुद को मैं इतने सारे कच्चे रिश्तों के बीच |
लिखते-लिखते रात गहरी होने लगी है अब,
अर्ज करते-करते कई मौसम गुज़र गए,
निशा ने रुकने का फैसला तो कर लिया
पर हम कई महीनों के लिए निशाचर बन गए |
Friday, September 11, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment