थोड़ी बारिश, थोड़ी कोशिश, थोड़ी शिद्दत हो गयी
थोड़ी हिम्मत, थोड़ी किस्मत, थोड़ी उल्फत हो गयी |
तुम मिले जो इस तरह तो
थोड़ी चाहत हो गयी |
तनहा से बैठे हम थे ऐसे
पल थे कुछ गुमनाम से
तुम जो बैठे पलकों में कल से
थोड़ी राहत हो गयी |
आज सुबह हँस रही है तेरी इस मुस्कान से
हम दीवाने हो रहे हैं तेरे उस अभिमान पे |
हंसके भी आज जीने की
थोड़ी मोहलत हो गयी |
सूरत जो ऐसी तुम ने थामी
सूरज भी मुरझा गया,
पल यहाँ रोशन हुआ तो
थोड़ी हैरत हो गयी |
कह ना पाए कुछ ना तुमसे
लफ़्ज़ों से लाचार हुए,
देखते ही रह गए बस
ऐसी हालत हो गयी |
साथ चलने तुम लगे भी
और तुमको ये पता नहीं,
साए के संग चलने की भी
थोड़ी आदत हो गयी |
तेरे आगे झुकने लगे जब
दूर तब रहने लगा रब,
और तुमसे क्या कहें अब
थोड़ी जन्नत हो गयी |
इस सुबह के दरम्यां ही
सारी हसरत हो गयी |
रोज़ ऐसी ही सुबह की
थोड़ी मन्नत हो गयी...
Sunday, October 10, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
tune ab apni posts ko tag karna band kar diya kya???
ReplyDeleteYou guys have turned so intelligent now..
ReplyDeleteTag karne ka koi fayda hai kya ab :)
ohh.. isliye fiction hata diya hain kya???
ReplyDeleteP.S. ek aur mast poem...